जैसे की आपने ऊपर बैजनाथ का नाम सुना और आप इस मंदिर के बारे में भी जानते ही होंगे। लेकिन एक मिनट हम उत्तराखंड के बैजनाथ मंदिर की बात नहीं कर रहे बल्कि हम बात कर रहे है हिमाचल के बैजनाथ के शिव मंदिर की जो काँगड़ा जिले में स्थित है काँगड़ा से इस मंदिर की दुरी मात्र 50 किलोमीटर है आज इस लेख में सिर्फ और सिर्फ इस मंदिर को लेकर ही चर्चा करेंगे। हम आपको इस मंदिर के बारे में वो सब बताएंगे जो हम इसके बारे में जानते है।
मंदिर मुख्य बैजनाथ में ही स्थित है अगर आप बैजनाथ पहुँच जाते है तो आपको इस मंदिर को ढूंढ़ने में ज़्यादा कठिनाई नहीं होगी। धर्मशाला से इस मंदिर की दुरी 45 किलोमीटर है इसलिए आपको बताना चाहेंगे अगर आप धर्मशाला घूमने जायेंगे तो ये मंदिर आप से ज़्यादा दूर नहीं रह जायेगा। और हाँ आपको बता दें आपको धर्मशाला या काँगड़ा से बैजनाथ के लिए सैकड़ों बसों बसें मिल जाएँगी यदि आप टैक्सी द्वारा धर्मशाला नहीं आये है तो बस आपको यहाँ से बड़ी आसानी से मिल जाएगी।
बात त्रेता युग की है जब रावण ने तीनों लोकों पर विजय पाने के लिए शिवजी भगवान की हिमालय में बैठ कर घोर तपस्या की थी। लंका पति ने भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए अपने दस सिर काटकर भगवान को हवन में अर्पित कर दिए। लंकापति की इस घोर तपस्या से भगवान शिव जी बहुत प्रसन्न थे लेकिन कुछ देवता रावण की तपस्या को लेकर चिंतित भी थे।
कई सालों की तपस्या के बाद भगवान शिव भी रावण को वरदान देने के लिए पहुँच गए। वरदान के साथ रावण ने लंका में शिवलिंग स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की। उसी दौरान शिव ने अपना शरीर एक शिवलिंग में परिवर्तित कर लिया और रावण से कहा की “अगर ये शिवलिंग तुमने कहीं बीच रास्ते में रख दिया तो ये वहीं स्थापित हो जायेगा ” और भगवान शिव कि बात को ध्यान में रकते हुए शिवलिंग को उठाकर लंका की ओर चल दिया।
कुछ दूर जाकर लंका पति रावण लघुशंका के कारण बीच रास्ते में विश्राम की इच्छा जताई। जहाँ रावण विश्राम कर रहा था वहां कुछ लोग अपनी बकरियां भी चरा रहे थे लघुशंका के कारण रावण ने शिवलिंग बकरी चराने वाले एक गड़रिये के हाथ में देकर उन्हें वहीं रुकने के लिए कहा उसी के साथ शिवलिंग को नीचे न रखने की भी नसीहत दी। लेकिन रावण ने आने में बहुत देर कर दी और उस बकरी चराने वाले ने शिवलिंग भारी होने के कारण शिवलिंग वहीं नीचे रख दिया। और वह वहीं स्थापित हो गया।
क्रोधित रावण ने शिवलिंग उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह हमेशा लाचार रहा और खाली हाथ ही लंका वापिस लौट गया। और मंदिर का निर्माण वहीँ करवा दिया जहाँ शिवलिंग स्थापित हुआ था। लेकिन रावण मन ही मन शिवजी भगवान की लीला भी जान गया था।
जहाँ शिवलिंग स्थापित हुआ था उसी जगह को आज बैजनाथ के मंदिर के रूप में जाना जाता है। शिवरात्रि में इस मंदिर में लोगों की भारी भीड़ रहती है साथ में मेले का आयोजन भी होता है जो 3 से 4 दिनों तक चलता रहता है। देश विदेश से आज इस मंदिर को देखने के लिए लोग आते है। सावन के महीने में भी कुछ ऐसा ही हाल होता है लेकिन उसके इलावा पुरे साल इस मंदिर को देखने हज़ारों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते है और यहाँ शिव की महिमा में खो जाते है।
आपको बता दें बैजनाथ में दशहरे का आयोजन नहीं किया जाता। आपने कुल्लू के दशहरे के बारे में सुना होगा और आप यहाँ दशहरे के बारे भले भांति जानते भी होंगे लेकिन बैजनाथ हिमाचल का ऐसी जगह है जहाँ दशहरे का आयोजन करना खतरे से खाली नहीं है खतरे से खाली वाक्य का प्रयोग हमने इसलिए किया क्योंकि सुनने कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ पर दशहरे का आयोजन कराने वाले की मृत्यु हो जाती है लेकिन ये सब सुनी सुनाई बाते है। हो सकता है यहाँ दशहरे न करवाने की कोई ओर वजह हो।
लेकिन अगर आप श्रद्धालु है या घूमने के शौकीन है तो इस मंदिर में एक बार ज़रूर दर्शन कर के आईये। क्यूंकि यह मंदिर आपको पहाड़ियों और नदियों के बीच घिरा हुआ मिलेगा और यहाँ का मौसम भी सुहाना रहता है आप उसका मज़ा भी अलग से ले सकते है हम लोग भी यहाँ एक बार प्रस्थान कर चुके है इसलिए आपको यहाँ जाने की नसीहत दे रहे है आशा करते है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा और आप भी एक बार बैजनाथ के शिव मंदिर में ज़रूर प्रस्थान करेंगे।